जगदीशपुर सीएचसी: इलाज कम, बवाल ज्यादा, राम भरोसे स्वास्थ्य सेवाएं

जगदीशपुर (अमेठी)। जगदीशपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) की बदहाल स्थिति अब किसी से छिपी नहीं है। मरीजों को उचित इलाज मिलना तो दूर, यहां अक्सर उन्हें अपमान और अभद्रता का सामना करना पड़ता है। डॉक्टरों की मनमानी और प्रशासन की चुप्पी ने स्वास्थ्य सेवाओं को मजाक बनाकर रख दिया है। अस्पताल में अव्यवस्था और लापरवाही के ऐसे हालात हैं कि मरीजों की जिंदगी पर खतरा मंडरा रहा है, लेकिन जिम्मेदार प्रतिनिधि और अधिकारी अपनी आंखें मूंदे बैठे हैं।
स्थानीय लोगों के अनुसार, जगदीशपुर सीएचसी में नए डॉक्टरों को लंबे समय तक रुकने ही नहीं दिया जाता। कुछ पुराने डॉक्टर यहां पर गहरी पकड़ बनाए हुए हैं और वे यहां से जाना नहीं चाहते। कारण साफ है - अस्पताल में उनकी पकड़ इतनी मजबूत है कि उनका प्राइवेट प्रैक्टिस का काम भी यहां खूब चलता है। बताया जाता है कि ये डॉक्टर अपने सरकारी आवासों में सुबह-शाम निजी प्रैक्टिस करते हैं और इसका मोटा लाभ कमाते हैं। इसलिए, यहां से ट्रांसफर होने के बजाय वे किसी भी तरह से अपनी तैनाती को बरकरार रखते हैं।
सूत्रों के मुताबिक, कुछ डॉक्टर तो कैमरा और औपचारिक उपस्थिति के बहाने अस्पताल में मौजूदगी दर्ज कराते हैं, लेकिन असल में अपनी निजी प्रैक्टिस में व्यस्त रहते हैं। एक बार जब कुछ डॉक्टरों का ट्रांसफर हुआ भी, तो सिफारिशों और राजनीतिक प्रभाव के चलते उनका ट्रांसफर रुकवा दिया गया और वे वापस जगदीशपुर लौट आए। सवाल उठता है कि आखिर यह विशेष सुविधा केवल कुछ डॉक्टरों को ही क्यों मिलती है?
बीते दिनों भाजपा के पूर्व मंडल अध्यक्ष नकछेद दुबे के साथ हुई घटना ने अस्पताल प्रशासन की पोल खोल दी। दुबे अपने गांव के मनोज कोरी को इलाज के लिए लाए थे, लेकिन इमरजेंसी में तैनात चिकित्सक ऋषि पांडेय ने न केवल मरीज को बाहर निकाल दिया, बल्कि विरोध करने पर दुबे के साथ मारपीट तक कर दी। दुबे ने इसकी शिकायत उच्चाधिकारियों से की। शिकायत के बाद डॉक्टर का ट्रांसफर कर दिया गया। बस, इससे ज्यादा और कर ही क्या सकते हैं? क्योंकि सारी जानकारी और खेल उच्च अधिकारी तक भी पहुंच चुका है, फिर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। वह तो कहिए, वे भाजपा नेता थे, इसलिए कार्रवाई हो गई। आम आदमी के मामले में क्या कार्रवाई होती, यह भी सोचने का विषय है।
चौंकाने वाली बात यह है कि जब अस्पताल में मरीज तड़प रहे होते हैं, तब जनप्रतिनिधि और अधिकारी भंडारों और होली मिलन समारोहों में व्यस्त दिखाई देते हैं। प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य विभाग से जुड़े राज्य मंत्री के जिले में ही जगदीशपुर की स्वास्थ्य सेवाएं दम तोड़ रही हैं, मगर उनका ध्यान अस्पताल की दुर्दशा पर नहीं है।
स्थानीय लोग कहते हैं कि आए दिन जगदीशपुर विधानसभा में होली मिलन, जन्मदिन और भंडारे जैसे आयोजन होते रहते हैं, जिनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर छाई रहती हैं। अधिकारी और जनप्रतिनिधि इन आयोजनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं, लेकिन जब बात अस्पताल की बदहाल स्थिति की आती है, तो सभी चुप्पी साध लेते हैं।
घटना का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है, जिसमें मरीजों और तीमारदारों की बेबसी साफ देखी जा सकती है। वीडियो में डॉक्टर और कर्मचारियों की लापरवाही और अभद्रता भी उजागर हुई है। बावजूद इसके, जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
क्षेत्रीय जनता ने मांग की है कि जिलाधिकारी स्वयं अस्पताल का औचक निरीक्षण करें और इस मामले में निष्पक्ष जांच कराएं। लोगों का कहना है कि जब तक वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंचकर वास्तविकता नहीं देखेंगे, तब तक सुधार की उम्मीद करना व्यर्थ है। अस्पताल में उपलब्ध दवाइयों की जानकारी को सार्वजनिक करने और अस्पताल में सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने की भी मांग की जा रही है। आए दिन यहां झगड़े और विवाद देखने को मिलते हैं, जिससे सुरक्षा की कमी साफ झलकती है। लोगों का कहना है कि अस्पताल परिसर में सुरक्षा के लिए पुलिस या सुरक्षाकर्मियों की तैनाती होनी चाहिए।
सूत्र बताते हैं कि अस्पताल में दवाइयों की कमी, डॉक्टरों की गैर-मौजूदगी और मरीजों के प्रति अमानवीय व्यवहार जैसी समस्याएं आम हो चुकी हैं। नए डॉक्टरों को यहां टिकने नहीं दिया जाता और कुछ पुराने डॉक्टर यहां से जाना नहीं चाहते। वे अपनी गहरी पकड़ बना चुके हैं और किसी भी कीमत पर उसे छोड़ना नहीं चाहते।
अब देखना यह है कि प्रशासन इस मामले में कब जागता है और दोषियों पर क्या कार्रवाई करता है। जनता चाहती है कि स्वास्थ्य सेवाएं रामभरोसे न चलें, बल्कि अस्पताल में व्यवस्था सुधार के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। वरना जगदीशपुर सीएचसी सिर्फ अखबारों की सुर्खियों तक ही सीमित रह जाएगा, और मरीज इलाज के लिए दर-दर भटकते रहेंगे।
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