अमेठी के बीएसए आदेश शिक्षा में सुधार या सिर्फ दिखावा?

अमेठी। जिले के वित्तविहीन मान्यता प्राप्त स्कूलों में निजी प्रकाशकों की किताबें थोपने पर रोक लगाने के लिए बीएसए अमेठी द्वारा 2 अप्रैल को जारी आदेश ने नयी बहस छेड़ दी है। आदेश में एनसीईआरटी/एससीईआरटी की पुस्तकों को अनिवार्य करने की बात तो है, लेकिन इसकी देरी ने खुद शिक्षा विभाग की नीयत और गंभीरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
जनता पूछ रही है जब फरवरी-मार्च में अधिकांश अभिभावक किताबें खरीद चुके होते हैं, तो अप्रैल में जारी आदेश का क्या औचित्य है? क्या यह फैसला बच्चों की भलाई के लिए है या केवल दिखावे की खानापूर्ति?
अभिभावक असमंजस में हैं कि क्या अब वे दोबारा एनसीईआरटी की किताबें खरीदें? और जिन बच्चों ने पहले से प्राइवेट किताबें ले ली हैं, क्या वे अब दो-दो पाठ्यक्रम पढ़ेंगे? इससे तो पढ़ाई की पूरी व्यवस्था उलझ जाएगी।
आदेश जिन अफसरों को भेजा गया - मुख्य विकास अधिकारी, बीईओ, मंडलीय सहायक निदेशक बेसिक, जिला विद्यालय निरीक्षक आदि - क्या किसी ने यह नहीं पूछा कि यह आदेश सही समय पर क्यों नहीं जारी हुआ? क्या सबकी ज़िम्मेदारी केवल आदेश फाइल में लगाने तक सीमित रह गई है?
शिक्षा विभाग की चुप्पी ने आम जनता में यह धारणा बना दी है कि जब तक किताबों की बिक्री हो जाती है, तब तक प्रशासन आंख मूंदे रहता है, और जब सब कुछ बिक चुका होता है, तब नियम याद आते हैं।
अब सवाल बड़ा है कि क्या यह आदेश ज़मीन पर उतरेगा या केवल नोटिस बोर्ड की शोभा बढ़ाएगा? शासन की मंशा पर नहीं, लेकिन अमेठी के शिक्षा अमले की सक्रियता और समयबद्धता पर जनता जवाब चाहती है।
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